Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 270-272.

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अपनी जिज्ञासा ही मार्ग बना लेती है । शास्त्र
साधन हैं, परन्तु मार्ग तो अपनेसे ही ज्ञात होता है ।
अपनी गहरी तीव्र रुचि और सूक्ष्म उपयोगसे मार्ग
ज्ञात होता है । कारण देना चाहिये ।।२७०।।
जिसकी जिसे तन्मयतासे लगन हो उसे वह नहीं
भूलता । ‘यह शरीर सो मैं’ वह नहीं भूलता । नींदमें
भी शरीरके नामसे बुलाये तो उत्तर देता है, क्योंकि
शरीरके साथ तन्मयताकी मान्यताका अनादि अभ्यास
है । अनभ्यस्त ज्ञायकके अन्दर जानेके लिये सूक्ष्म
होना पड़ता है, धीर होना पड़ता है, स्थिर होना
पड़ता है; वह कठिन लगता है । बाह्य कार्योंका
अभ्यास है इसलिये सरल लगते हैं । लेकिन जब भी
कर तब तुझे ही करना है ।।२७१।।
जो खूब थका हुआ है, द्रव्यके सिवा जिसे कुछ
चाहिये ही नहीं, जिसे आशा-पिपासा छूट गई है, द्रव्यमें
जो हो वही जिसे चाहिये, वह सच्चा जिज्ञासु है ।
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बहिनश्रीके वचनामृत