सकते, आत्माकी ज्ञातृत्वधाराको नहीं तोड़ सकते ।
पुद्गलपरिणतिरूप उपसर्ग कहीं आत्मपरिणतिको नहीं
बदल सकते ।।२६८।।
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अहो ! देव-शास्त्र-गुरु मंगल हैं, उपकारी हैं । हमें
तो देव-शास्त्र-गुरुका दासत्व चाहिये ।
पूज्य कहानगुरुदेवसे तो मुक्ति का मार्ग मिला है ।
उन्होंने चारों ओरसे मुक्ति का मार्ग प्रकाशित किया
है । गुरुदेवका अपार उपकार है । वह उपकार कैसे
भूला जाय ?
गुरुदेवका द्रव्य तो अलौकिक है । उनका
श्रुतज्ञान और वाणी आश्चर्यकारी है ।
परम-उपकारी गुरुदेवका द्रव्य मंगल है, उनकी
अमृतमयी वाणी मंगल है । वे मंगलमूर्ति हैं,
भवोदधितारणहार हैं, महिमावन्त गुणोंसे भरपूर हैं ।
पूज्य गुरुदेवके चरणकमलकी भक्ति और उनका
दासत्व निरंतर हो ।।२६९।।
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बहिनश्रीके वचनामृत
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