Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 319-321.

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बहिनश्रीके वचनामृत
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विभावसे पृथक् होकर चैतन्यतत्त्वको ग्रहण कर । यही करना है । पर्याय सन्मुख देखकर पर्यायमें कुछ नहीं करना है । द्रव्यद्रष्टि करनेसे पर्यायमें दर्शन-ज्ञान-चारित्र आ ही जायँगे । कुआँ खोद तो पानी आयगा ही, लेने नहीं जाना पड़ेगा । चैतन्यपाताल फू टने पर शुद्ध पर्यायका प्रवाह अपने- आप ही चलने लगेगा ।।३१९।।

चैतन्यकी धरती तो अनंत गुणरूपी बीजसे भरी, उपजाऊ है । इस उपजाऊ धरतीको ज्ञान-ध्यानरूपी पानीसे सींचने पर वह लहलहा उठेगी ।।३२०।।

पर्याय पर द्रष्टि रखनेसे चैतन्य प्रगट नहीं होता, द्रव्यद्रष्टि करनेसे ही चैतन्य प्रगट होता है । द्रव्यमें अनंत सामर्थ्य भरा है, उस द्रव्य पर द्रष्टि लगाओ । निगोदसे लेकर सिद्ध तककी कोई भी पर्याय शुद्ध द्रष्टिका विषय नहीं है । साधकदशा भी शुद्ध द्रष्टिके विषयभूत मूल स्वभावमें नहीं है । द्रव्यद्रष्टि करनेसे ही आगे बढ़ा जा सकता है, शुद्ध पर्यायकी द्रष्टिसे