गुणोंकी अनन्त पूर्ण पर्यायें प्रकाशमान हो उठीं ।
अभी इस पंचम कालमें भरतक्षेत्रमें तीर्थंकर- भगवानका विरह है, केवलज्ञानी भी नहीं हैं । महाविदेहक्षेत्रमें कभी तीर्थंकरका विरह नहीं होता, सदैव धर्मकाल वर्तता है । आज भी वहाँ भिन्न-भिन्न विभागोंमें एक-एक तीर्थंकर मिलाकर बीस तीर्थंकर विद्यमान हैं । वर्तमानमें विदेहक्षेत्रके पुष्कलावती- विजयमें श्री सीमंधरनाथ विचर रहे हैं और समवसरणमें विराजकर दिव्यध्वनिके स्रोत बहा रहे हैं । इस प्रकार अन्य विभागोंमें अन्य तीर्थंकरभगवन्त विचर रहे हैं ।
यद्यपि वीरभगवान निर्वाण पधारे हैं तथापि इस पंचम कालमें इस भरतक्षेत्रमें वीरभगवानका शासन प्रवर्त रहा है, उनका उपकार वर्त रहा है । वीर- प्रभुके शासनमें अनेक समर्थ आचार्यभगवान हुए जिन्होंने वीरभगवानकी वाणीके रहस्यको विविध प्रकारसे शास्त्रोंमें भर दिया है । श्री कुन्दकुन्दादि समर्थ आचार्यभगवन्तोंने दिव्यध्वनिके गहन रहस्योंसे भरपूर परमागमोंकी रचना करके मुक्ति का मार्ग