Benshreeke Vachanamrut (Hindi).

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बहिनश्रीके वचनामृत

[ २०१

अलौकिक आनन्दमें और केवलज्ञानमें परिणमते थे । आज उनने सिद्धदशा प्राप्त की । चैतन्यशरीरी भगवान आज पूर्ण अकम्प होकर अयोगीपदको प्राप्त हुए, चैतन्यपिण्ड पृथक् हो गया, स्वयं पूर्ण चिद्रूप होकर चैतन्यबिम्बरूपसे सिद्धालयमें विराज गये; अब सदा समाधिसुख-आदि अनन्तगुणोंमें परिणमन करते रहेंगे । आज भरतक्षेत्रसे त्रिलोकीनाथ चले गये, तीर्थंकरभगवानका वियोग हुआ, वीरप्रभुका आज विरह पड़ा । इन्द्रोंने ऊपरसे उतरकर आज निर्वाण- महोत्सव मनाया । देवों द्वारा मनाया गया वह निर्वाणकल्याणकमहोत्सव कैसा दिव्य होगा ! उसका अनुसरण करके आज भी लोग प्रतिवर्ष दिवालीके दिन दीपमाला प्रज्वलित करके दीपावलीमहोत्सव मनाते हैं ।

आज वीरप्रभु मोक्ष पधारे । गणधरदेव श्री गौतमस्वामी तुरन्त ही अंतरमें गहरे उतर गये और वीतरागदशा प्राप्त करके केवलज्ञान प्राप्त किया । आत्माके स्वक्षेत्रमें रहकर लोकालोकको जाननेवाला आश्चर्यकारी, स्वपरप्रकाशक प्रत्यक्षज्ञान उन्हें प्रगट हुआ, आत्माके असंख्य प्रदेशोंमें आनन्दादि अनन्त