अलौकिक आनन्दमें और केवलज्ञानमें परिणमते थे ।
आज उनने सिद्धदशा प्राप्त की । चैतन्यशरीरी भगवान
आज पूर्ण अकम्प होकर अयोगीपदको प्राप्त हुए,
चैतन्यपिण्ड पृथक् हो गया, स्वयं पूर्ण चिद्रूप होकर
चैतन्यबिम्बरूपसे सिद्धालयमें विराज गये; अब सदा
समाधिसुख-आदि अनन्तगुणोंमें परिणमन करते
रहेंगे । आज भरतक्षेत्रसे त्रिलोकीनाथ चले गये,
तीर्थंकरभगवानका वियोग हुआ, वीरप्रभुका आज
विरह पड़ा । इन्द्रोंने ऊपरसे उतरकर आज निर्वाण-
महोत्सव मनाया । देवों द्वारा मनाया गया वह
निर्वाणकल्याणकमहोत्सव कैसा दिव्य होगा ! उसका
अनुसरण करके आज भी लोग प्रतिवर्ष दिवालीके
दिन दीपमाला प्रज्वलित करके दीपावलीमहोत्सव
मनाते हैं ।
आज वीरप्रभु मोक्ष पधारे । गणधरदेव श्री
गौतमस्वामी तुरन्त ही अंतरमें गहरे उतर गये और
वीतरागदशा प्राप्त करके केवलज्ञान प्राप्त किया ।
आत्माके स्वक्षेत्रमें रहकर लोकालोकको जाननेवाला
आश्चर्यकारी, स्वपरप्रकाशक प्रत्यक्षज्ञान उन्हें प्रगट
हुआ, आत्माके असंख्य प्रदेशोंमें आनन्दादि अनन्त
बहिनश्रीके वचनामृत
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