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बहिनश्रीके वचनामृत
उत्तर : — द्रष्टि तो ध्रुवस्वभावकी ही होती है; वेदन होता है आनन्दादि पर्यायोंका ।
द्रव्य तो स्वभावसे अनादि-अनंत है जो पलटता नहीं है, बदलता नहीं है । उस पर द्रष्टि करनेसे, उसका ध्यान करनेसे, अपनी विभूतिका प्रगट अनुभव होता है ।।४३०।।
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प्रश्न : — निर्विकल्प अनुभूतिके समय आनन्द कैसा होता है ?
उत्तर : — उस आनन्दकी, किसी जगतके — विभावके — आनन्दके साथ, बाहरकी किसी वस्तुके साथ, तुलना नहीं है । जिसको अनुभवमें आता है वह जानता है । उसे कोई उपमा लागू नहीं होती । ऐसी अचिन्त्य अद्भुत उसकी महिमा है ।।४३१।।
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प्रश्न : — आज वीरनिर्वाणदिनके प्रसंग पर कृपया दो शब्द कहिये ।
उत्तर : — श्री महावीर तीर्थाधिनाथ आत्माके पूर्ण