Benshreeke Vachanamrut (Hindi). Bol: 431-432.

< Previous Page   Next Page >


Page 200 of 212
PDF/HTML Page 215 of 227

 

२००

बहिनश्रीके वचनामृत

उत्तर :द्रष्टि तो ध्रुवस्वभावकी ही होती है; वेदन होता है आनन्दादि पर्यायोंका ।

द्रव्य तो स्वभावसे अनादि-अनंत है जो पलटता नहीं है, बदलता नहीं है । उस पर द्रष्टि करनेसे, उसका ध्यान करनेसे, अपनी विभूतिका प्रगट अनुभव होता है ।।४३०।।

प्रश्न :निर्विकल्प अनुभूतिके समय आनन्द कैसा होता है ?

उत्तर :उस आनन्दकी, किसी जगतके विभावकेआनन्दके साथ, बाहरकी किसी वस्तुके साथ, तुलना नहीं है । जिसको अनुभवमें आता है वह जानता है । उसे कोई उपमा लागू नहीं होती । ऐसी अचिन्त्य अद्भुत उसकी महिमा है ।।४३१।।

प्रश्न :आज वीरनिर्वाणदिनके प्रसंग पर कृपया दो शब्द कहिये ।

उत्तर :श्री महावीर तीर्थाधिनाथ आत्माके पूर्ण