आवी श्रावणनी बीजलडी
[राग : — रूपला रातलडीमां]
आवी श्रावणनी बीजलडी आनंददायिनी हो बेन, – सुमंगलमालिनी हो बेन !
जन्म्यां कुंवरी माता – ‘तेज’ – घरे महा पावनी हो बेन, – परम कल्याणिनी हो बेन !
ऊतरी शीतळतानी देवी शशी मुख धारती हो बेन, – नयनयुग ठारती हो बेन !
निर्मळ आंखलडी सूक्ष्म--सुमति--प्रतिभासिनी हो बेन, – अचल तेजस्विनी हो बेन !
(साखी)
मातानी बहु लाडिली, पितानी काळज – कोर;
बंधुनी प्रिय ब्हेनडी, जाणे चंद्र – चकोर.
ब्हेनी बोले ओछुं, बोलाव्ये मुख मलकती हो बेन, – कदीक फू ल वेरती हो बेन !
सरला, चित्तउदारा, गुणमाळा उर धारिणी हो बेन, – सदा सुविचारिणी हो बेन !.....आवी०
(साखी)
वैरागी अंतर्मुखी, मंथन पारावार;
ज्ञातानुं तल स्पर्शीने, कर्यो सफ ळ अवतार,
ज्ञायक – अनुलग्ना, श्रुतदिव्या, शुद्धिविकासिनी हो बेन,
– परमपदसाधिनी हो बेन !
संगविमुख, एकल निज – नंदनवन – सुविहारिणी हो बेन, – सुधा
– आस्वादिनी हो बेन !....आवी०
(साखी)
स्मरणो भव – भवनां रूडां, स्वर्णमयी इतिहास,
– दैवी उर – आनंदिनी ‘चंपा’ पुष्प – सुवास।
कल्पलता मळी पुण्योदयथी चिंतितदायिनी हो बेन, – सकलदुखनाशिनी हो बेन !
मुक्ति वरुं – मनरथ ए मात पूरो वरदायिनी हो बेन,
– महाबलशालिनी हो बेन !....आवी०