१४
मुमुक्षुको प्रथम भूमिकामें थोड़ी उलझन भी होती है, परन्तु वह ऐसा नहीं उलझता कि जिससे मूढ़ता हो जाय । उसे सुखका वेदन चाहिये है वह मिलता नहीं और बाहर रहना पोसाता नहीं है, इसलिये उलझन होती है, परन्तु उलझनमेंसे वह मार्ग ढूँढ़ लेता है । जितना पुरुषार्थ उठाये उतना वीर्य अंदर काम करता है । आत्मार्थी हठ नहीं करता कि मुझे झटपट करना है । स्वभावमें हठ काम नहीं आती । मार्ग सहज है, व्यर्थकी जल्दबाजीसे प्राप्त नहीं होता ।।३४।।
अनंत कालसे जीवको अशुभ भावकी आदत पड़ गई है, इसलिये उसे अशुभ भाव सहज है । और शुभको बारम्बार करनेसे शुभ भाव भी सहज हो जाता है । परन्तु अपना स्वभाव जो कि सचमुच सहज है उसका ख्याल जीवको नहीं आता, खबर नहीं पड़ती । उपयोगको सूक्ष्म करके सहज स्वभाव पकड़ना चाहिये ।।३५।।
जो प्रथम उपयोगको पलटना चाहता है परन्तु