मुमुक्षुको प्रथम भूमिकामें थोड़ी उलझन भी होती
है, परन्तु वह ऐसा नहीं उलझता कि जिससे मूढ़ता
हो जाय । उसे सुखका वेदन चाहिये है वह मिलता
नहीं और बाहर रहना पोसाता नहीं है, इसलिये
उलझन होती है, परन्तु उलझनमेंसे वह मार्ग ढूँढ़ लेता
है । जितना पुरुषार्थ उठाये उतना वीर्य अंदर काम
करता है । आत्मार्थी हठ नहीं करता कि मुझे झटपट
करना है । स्वभावमें हठ काम नहीं आती । मार्ग
सहज है, व्यर्थकी जल्दबाजीसे प्राप्त नहीं होता ।।३४।।
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अनंत कालसे जीवको अशुभ भावकी आदत पड़
गई है, इसलिये उसे अशुभ भाव सहज है । और
शुभको बारम्बार करनेसे शुभ भाव भी सहज हो
जाता है । परन्तु अपना स्वभाव जो कि सचमुच
सहज है उसका ख्याल जीवको नहीं आता, खबर नहीं
पड़ती । उपयोगको सूक्ष्म करके सहज स्वभाव
पकड़ना चाहिये ।।३५।।
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जो प्रथम उपयोगको पलटना चाहता है परन्तु
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बहिनश्रीके वचनामृत