नक्की करे छे, त्यां अनंती विभूति अंशे प्रगट थई जाय छे. २४५.
चक्ररत्न आयुधशाळामां प्रगट थयुं होय पछी चक्रवर्ती निरांते बेसी न रहे, छ खंड साधवा जाय; तेम आ चैतन्यचक्रवर्ती जाग्यो, सम्यग्दर्शनरूपी चक्ररत्न प्राप्त थयुं, हवे तो अप्रमत्त भावे केवळज्ञान ज ले. २४६.
आत्मसाक्षात्कार ते ज अपूर्व दर्शन छे. अनंत काळमां न थयुं होय एवुं, चैतन्यतत्त्वमां जईने जे दिव्य दर्शन, ते ज अलौकिक दर्शन छे. सिद्धदशा सुधीनी सर्व लब्धि शुद्धात्मानुभूतिमां जईने मळे छे. २४७.
विश्वनुं अद्भुत तत्त्व तुं ज छो. तेनी अंदरमां जतां तारा अनंत गुणोनो बगीचो खीली ऊठशे. त्यां ज ज्ञान मळशे, त्यां ज आनंद मळशे; त्यां ज विहार कर. अनंत काळनो विसामो त्यां ज छे. २४८.
तुं अंदरमां ऊंडो ऊंडो ऊतरी जा, तने निज