Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 242-245.

< Previous Page   Next Page >


Page 84 of 186
PDF/HTML Page 101 of 203

 

८४

बहेनश्रीनां वचनामृत

चैतन्यदेवनी ओथ ले, तेना शरणे जा; तारां बधां कर्मो तूटीने नाश थई जशे. चक्रवर्ती रस्तेथी नीकळे तो अपराधी जीवो ध्रूजी ऊठे छे, तो आ तो त्रण लोकनो बादशाहचैतन्यचक्रवर्ती! तेनी पासे जड कर्म ऊभां ज क्यांथी रहे? २४२.

ज्ञायक आत्मा नित्य अने अभेद छे; द्रष्टिना विषयभूत एवा तेना स्वरूपमां अनित्य शुद्धाशुद्ध पर्यायो के गुणभेद कांई छे ज नहि. प्रयोजननी सिद्धि माटे ए ज परमार्थ-आत्मा छे. तेना ज आश्रये धर्म प्रगट थाय छे. २४३.

ओहो! आत्मा तो अनंती विभूतिथी भरेलो, अनंता गुणोनो राशि, अनंता गुणोनो मोटो पर्वत छे! चारे तरफ गुणो ज भरेला छे, अवगुण एक पण नथी. ओहो! आ हुं? आवा आत्मानां दर्शन माटे जीवे कदी खरुं कुतूहल ज कर्युं नथी. २४४.

हुं मुक्त ज छुं. मारे कंई जोईतुं नथी. हुं तो परिपूर्ण द्रव्यने पकडीने बेठो छुं.’आम ज्यां अंदरमां