साधना करनारने कोई स्पृहा होती नथी. मारे बीजुं कंई जोईतुं नथी, एक आत्मा ज जोईए छे. आ क्षणे वीतरागता थती होय तो बीजुं कंई ज नथी जोईतुं; पण अंदर रहेवातुं नथी, माटे बहार आववुं पडे छे. अत्यारे केवळज्ञान थतुं होय तो बहार ज न आवीए. २६३.
तारा चित्तमां बीजो रंग समायेलो छे, त्यां सुधी आत्मानो रंग लागी शकतो नथी. बहारनो बधो रस छूटी जाय तो आत्मा — ज्ञायकदेव प्रगट थाय छे. जेने गुणरत्नोथी गूंथायेलो आत्मा मळी जाय, तेने आ तुच्छ विभावोथी शुं प्रयोजन? २६४.
आत्मा जाणनार छे, सदाय जागृतस्वरूप ज छे. जागृतस्वरूप एवा आत्माने ओळखे तो पर्यायमां पण जागृति प्रगटे. आत्मा जागती ज्योत छे, तेने जाण. २६५.
जो तारे जन्म-मरणनो नाश करी आत्मानुं कल्याण करवुं होय तो आ चैतन्यभूमिमां ऊभो रहीने तुं पुरुषार्थ कर; तारां जन्म-मरणनो नाश थई जशे. आचार्यदेव