गुप्त — अप्राप्य रहेतो नथी. जागतो जीव ऊभो छे ते क्यां जाय? जरूर प्राप्त थाय ज. ३०६.
तत्त्वनो उपदेश असिधारा जेवो छे; तदनुसार परिणमतां मोह ऊभो रहेतो नथी. ३०७.
द्रव्य-गुण-पर्यायमां आखा ब्रह्मांडनुं तत्त्व आवी जाय छे. ‘दरेक द्रव्य पोताना गुणोमां रहीने स्वतंत्रपणे पोतानी पर्याये परिणमे छे’, ‘पर्याय द्रव्यने पहोंचे छे, द्रव्य पर्यायने पहोंचे छे’ — आवी आवी सूक्ष्मताने यथार्थपणे ख्यालमां लेतां मोह क्यां ऊभो रहे? ३०८.
बकरांना टोळामां रहेतुं पराक्रमी सिंहनुं बच्चुं पोताने बकरीनुं बच्चुं मानी ले पण सिंहने जोतां अने तेनी गर्जना सांभळतां ‘हुं तो आना जेवो सिंह छुं’ एम समजी जाय अने सिंहपणे पराक्रम फोरवे, तेम पर अने विभावनी वच्चे रहेला आ जीवे पोताने पर अने विभावरूप मानी लीधो छे पण जीवनुं मूळ स्वरूप बतावनार गुरुनी वाणी सांभळतां ते जागी ऊठे छे — ‘हुं तो ज्ञायक छुं’ एम समजी जाय छे अने