Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 303-306.

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बहेनश्रीनां वचनामृत

सम्यग्द्रष्टिने अखंड तत्त्वनो आश्रय छे, अखंड परथी द्रष्टि छूटी जाय तो साधकपणुं ज न रहे. द्रष्टि तो अंदर छे. चारित्रमां अपूर्णता छे. ते बहार ऊभेलो देखाय पण द्रष्टि तो स्वमां ज छे. ३०३.

भगवाननां प्रतिमा जोतां एम थाय के अहो! भगवान केवा ठरी गया छे! केवा समाई गया छे! चैतन्यनुं प्रतिबिंब छे! तुं आवो ज छो. जेवा भगवान पवित्र छे, तेवो ज तुं पवित्र छो, निष्क्रिय छो, निर्विकल्प छो. चैतन्यनी पासे बधुंय पाणी भरे छे. ३०४.

तुं तने जो; जेवो तुं छो तेवो ज तुं प्रगट थईश. तुं मोटो देवाधिदेव छो. तेनी प्रगटता माटे उग्र पुरुषार्थ अने सूक्ष्म उपयोग कर. ३०५.

रुचिनुं पोषण अने तत्त्वनुं घूंटण चैतन्यनी साथे वणाई जाय तो कार्य थाय ज. अनादिना अभ्यासथी विभावमां ज प्रेम लाग्यो छे ते छोड. जेने आत्मा पोषाय छे तेने बीजुं पोषातुं नथी अने तेनाथी आत्मा