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पोतानो महिमा ज पोताने तारे. बहारनां भक्ति- महिमाथी नहि पण चैतन्यनी परिणतिमां चैतन्यना निज महिमाथी तराय छे. चैतन्यना महिमावंतने भगवाननो साचो महिमा होय छे. अथवा भगवाननो महिमा समजवो ते निज चैतन्यमहिमा समजवामां निमित्त थाय छे. ३१६.
मुनिराज वंदना-प्रतिक्रमण आदिमां मांडमांड जोडाय छे. केवळज्ञान थतुं नथी माटे जोडावुं पडे छे. भूमिका प्रमाणे ते बधुं आवे छे पण स्वभावथी विरुद्ध होवाने लीधे उपाधिरूप लागे छे. स्वभाव निष्क्रिय छे तेमांथी मुनिराजने बहार आववुं गमतुं नथी. जेने जे काम न गमे ते कार्य तेने बोजारूप लागे छे. ३१७.
जीव पोतानी लगनीथी ज्ञायकपरिणतिने पहोंचे छे. हुं ज्ञायक छुं, हुं विभावभावथी जुदो छुं, कोई पण पर्यायमां अटकनार हुं नथी, हुं अगाध गुणोथी भरेलो छुं, हुं ध्रुव छुं, हुं शुद्ध छुं, हुं परम- पारिणामिकभाव छुं — एम, सम्यक् प्रतीति माटेनी लगनीवाळा आत्मार्थीने अनेक प्रकारे विचारो आवे छे.