११२
क्यांय रोकाया विना ‘ज्ञायक छुं’ एम वारंवार श्रद्धा अने ज्ञानमां निर्णय करवानो प्रयत्न करवो. ज्ञायकनुं लढण कर्या करवुं. ३३१.
एकान्ते दुःखना बळे छूटो पडे एम नथी, पण द्रव्यद्रष्टिना जोरथी छूटो पडे छे. दुःख लागतुं होय, गमतुं न होय, पण आत्माने ओळख्या विना — जाण्या विना जाय क्यां? आत्माने जाण्यो होय, तेनुं अस्तित्व ग्रहण कर्युं होय, तो ज छूटो पडे. ३३२.
चेतीने रहेवुं. ‘मने आवडे छे’ एम आवडतनी हूंफना रस्ते चडवुं नहि. विभावना रस्ते तो अनादिथी चडेलो ज छे. त्यांथी रोकवा माथे गुरु जोईए. एक पोतानी लगाम अने बीजी गुरुनी लगाम होय तो जीव पाछो वळे.
आवडतना मानथी दूर रहेवुं सारुं छे. बहार पडवाना प्रसंगोथी दूर भागवामां लाभ छे. ते बधा प्रसंगो निःसार छे; सारभूत एक आत्मस्वभाव छे. ३३३.
आत्मार्थीने श्री गुरुना सान्निध्यमां पुरुषार्थ सहेजे थाय छे. हुं तो सेवक छुं — ए द्रष्टि रहेवी जोईए. ‘हुं