Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 330.

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बहेनश्रीनां वचनामृत
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अहो! मुनिराज तो निजात्मधाममां निवास करे छे. तेमां विशेष विशेष एकाग्र थतां थतां तेओ वीतरागताने प्राप्त करे छे.

वीतरागता थवाथी तेमने ज्ञाननी अगाध अद्भुत शक्ति प्रगट थाय छे. ज्ञाननो अंतर्मुहूर्तनो स्थूल उपयोग छूटी एक समयनो सूक्ष्म उपयोग थई जाय छे. ते ज्ञान पोताना क्षेत्रमां रहीने बधेय पहोंची वळे छे लोकालोकने जाणी ले छे, भूतवर्तमानभावी सर्व पर्यायोने क्रम पड्या विना एक समयमां वर्तमानवत जाणे छे, स्वपदार्थ तेम ज अनंत परपदार्थोनी त्रणे काळनी पर्यायोना अनंत अनंत अविभाग प्रतिच्छेदोने एक समयमां प्रत्यक्ष जाणे छे.आवा अचिंत्य महिमावंत केवळज्ञानने वीतराग मुनिराज प्राप्त करे छे.

केवळज्ञान प्रगटतां, जेम कमळ हजार पांखडीथी खीली नीकळे तेम, दिव्यमूर्ति चैतन्यदेव अनंत गुणोनी अनंत पांखडीओथी खीली ऊठे छे. केवळज्ञानी भगवान चैतन्यमूर्तिना ज्ञान-आनंदादि अनंत गुणोनी पूर्ण पर्यायोमां सादि-अनंत केलि करे छे; निजधामनी अंदरमां शाश्वतपणे बिराजी गया, तेमांथी कदी बहार आवता ज नथी. ३३०.