Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 327-329.

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बहेनश्रीनां वचनामृत

देवलोकमां ऊंची जातनां रत्नो अने महेलो होय तेथी आत्माने शुं? कर्मभूमिना मनुष्यो रांधी खाय त्यां पण आकुळता अने देवोने अमी झरे त्यां पण आकुळता ज छे. छ खंडने साधनारा चक्रवर्तीना राज्यमां पण आकुळता छे. अंतरनी ॠद्धि न प्रगटे, शान्ति न प्रगटे, तो बहारनी ॠद्धि अने वैभव शी शान्ति आपे? ३२७.

मुनिदशानी शी वात! मुनिओ तो प्रमत्त- अप्रमत्तपणामां सदा झूलनारा छे! तेमने तो सर्वगुण- संपन्न कही शकाय! ३२८.

मुनिराज वारंवार निर्विकल्पपणे चैतन्यनगरमां प्रवेशी अद्भुत ॠद्धिने अनुभवे छे. ते दशामां, अनंत गुणोथी भरपूर चैतन्यदेव भिन्नभिन्न प्रकारना चमत्कारिक पर्यायरूप तरंगोमां अने आश्चर्यकारी आनंदतरंगोमां डोले छे. मुनिराज तेम ज सम्यग्द्रष्टि जीवनुं आ स्वसंवेदन कोई जुदुं ज छे, वचनातीत छे. त्यां शून्यता नथी, जागृतपणे अलौकिक ॠद्धिनुं अत्यंत स्पष्ट वेदन छे. तुं त्यां जा, तने चैतन्यदेवनां दर्शन थशे. ३२९.