Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 324-326.

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बहेनश्रीनां वचनामृत
१०९

जेम एक रत्ननो पर्वत होय अने एक रत्ननो कणियो होय त्यां कणियो तो वानगीरूप छे, पर्वतनो प्रकाश अने तेनी कीमत घणी वधारे होय; तेम केवळज्ञाननो महिमा श्रुतज्ञान करतां घणो वधारे छे. एक समयमां सर्व द्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावने संपूर्णपणे जाणनार केवळज्ञानमां अने अल्प सामर्थ्यवाळा श्रुतज्ञानमांभले ते अंतर्मुहूर्तमां बधुंय श्रुत फेरवी जनार श्रुतकेवळीनुं श्रुतज्ञान होय तोपणघणो मोटो तफावत छे. ज्यां ज्ञान अनंत किरणोथी प्रकाशी नीकळ्युं, ज्यां चैतन्यनी चमत्कारिक ॠद्धि पूर्ण प्रगट थई गईएवा पूर्ण क्षायिक ज्ञानमां अने खंडात्मक क्षायोपशमिक ज्ञानमां अनंतो फेर छे. ३२४.

ज्ञानीने स्वानुभूति वखते के उपयोग बहार आवे त्यारे द्रष्टि तळ उपर कायम टकेली छे. बहार एकमेक थयेलो देखाय त्यारे पण ते तो (द्रष्टि-अपेक्षाए) ऊंडी ऊंडी गुफामांथी बहार नीकळतो ज नथी. ३२५.

तळ स्पर्श्युं तेने बहार थोथुं लागे छे. चैतन्यना तळमां पहोंची गयो ते चैतन्यनी विभूतिमां पहोंची गयो. ३२६.