Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 343.

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बहेनश्रीनां वचनामृत
११५

बहारमां देव-शास्त्र-गुरु साथे; बस, अन्य साथे तारे शुं प्रयोजन छे?

जे व्यवहारे साधनरूप कहेवाय छे, जेमनुं आलंबन साधकने आव्या विना रहेतुं नथीएवां देव-शास्त्र-गुरुना आलंबनरूप शुभ भाव ते पण परमार्थे हेय छे, तो पछी अन्य पदार्थो के अशुभ भावोनी तो वात ज शी? तेमनाथी तारे शुं प्रयोजन छे?

आत्मानी मुख्यतापूर्वक देव-शास्त्र-गुरुनुं आलंबन साधकने आवे छे. मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेवे पण कह्युं छे के ‘हे जिनेंद्र! हुं गमे ते स्थळे होउं पण फरीफरीने आपनां पादपंकजनी भक्ति हो’!आवा भाव साधकदशामां आवे छे, अने साथे साथे आत्मानी मुख्यता तो सतत रह्या ज करे छे. ३४२.

अनंत जीवो पुरुषार्थ करी, स्वभावे परिणमी, विभाव टाळी, सिद्ध थया; माटे जो तारे सिद्धमंडळीमां भळवुं होय तो तुं पण पुरुषार्थ कर.

कोई पण जीवने पुरुषार्थ कर्या विना तो भवान्त थवानो ज नथी. त्यां कोई जीव तो, जेम घोडो छलंग मारे तेम, उग्र पुरुषार्थ करी त्वराथी वस्तुने पहोंची