बहारमां देव-शास्त्र-गुरु साथे; बस, अन्य साथे तारे शुं प्रयोजन छे?
जे व्यवहारे साधनरूप कहेवाय छे, जेमनुं आलंबन साधकने आव्या विना रहेतुं नथी — एवां देव-शास्त्र-गुरुना आलंबनरूप शुभ भाव ते पण परमार्थे हेय छे, तो पछी अन्य पदार्थो के अशुभ भावोनी तो वात ज शी? तेमनाथी तारे शुं प्रयोजन छे?
आत्मानी मुख्यतापूर्वक देव-शास्त्र-गुरुनुं आलंबन साधकने आवे छे. मुनिराज श्री पद्मप्रभमलधारिदेवे पण कह्युं छे के ‘हे जिनेंद्र! हुं गमे ते स्थळे होउं पण फरीफरीने आपनां पादपंकजनी भक्ति हो’! — आवा भाव साधकदशामां आवे छे, अने साथे साथे आत्मानी मुख्यता तो सतत रह्या ज करे छे. ३४२.
अनंत जीवो पुरुषार्थ करी, स्वभावे परिणमी, विभाव टाळी, सिद्ध थया; माटे जो तारे सिद्धमंडळीमां भळवुं होय तो तुं पण पुरुषार्थ कर.
कोई पण जीवने पुरुषार्थ कर्या विना तो भवान्त थवानो ज नथी. त्यां कोई जीव तो, जेम घोडो छलंग मारे तेम, उग्र पुरुषार्थ करी त्वराथी वस्तुने पहोंची