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जाय छे, तो कोई जीव धीमे धीमे पहोंचे छे.
वस्तुने पामवुं, तेमां टकवुं अने आगळ वधवुं — बधुं पुरुषार्थथी ज थाय छे. पुरुषार्थ बहार जाय छे तेने अंदर लाव. आत्माना जे सहज स्वभावो छे ते पुरुषार्थ द्वारा स्वयं प्रगट थशे. ३४३.
ज्यांसुधी सामान्य तत्त्व — ध्रुव तत्त्व — ख्यालमां न आवे, त्यांसुधी अंदर मार्ग क्यांथी सूझे अने क्यांथी प्रगटे? माटे सामान्य तत्त्वने ख्यालमां लई तेनो आश्रय करवो. साधकने आश्रय तो प्रारंभथी पूर्णता सुधी एक ज्ञायकनो ज — द्रव्यसामान्यनो ज — ध्रुव तत्त्वनो ज होय छे. ज्ञायकनुं — ‘ध्रुव’नुं जोर एक क्षण पण खसतुं नथी. द्रष्टि ज्ञायक सिवाय कोईने स्वीकारती नथी — ध्रुव सिवाय कोईने गणकारती नथी; अशुद्ध पर्यायने नहि, शुद्ध पर्यायने नहि, गुणभेदने नहि. जोके साथे वर्ततुं ज्ञान बधांनो विवेक करे छे, तोपण द्रष्टिनो विषय तो सदा एक ध्रुव ज्ञायक ज छे, ते कदी छूटतो नथी.
पूज्य गुरुदेवनो आ प्रमाणे ज उपदेश छे, शास्त्रो पण आम ज कहे छे, वस्तुस्थिति पण आम ज छे. ३४४.