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अंदरमां ऊंडाणथी भावना जागे अने वस्तुनुं स्वरूप केवुं छे तेनी ओळखाण करे, प्रतीति करे, तो साची शान्ति मळ्या विना रहे नहि. ३४७.
रुचिनी उग्रताए पुरुषार्थ सहज लागे अने रुचिनी मंदताए कठण लागे. रुचि मंद पडी जतां आडेअवळे चडी जाय त्यारे अघरुं लागे अने रुचि वधतां सहेलुं लागे. पोते प्रमाद करे तो दुर्गम थाय छे अने पोते उग्र पुरुषार्थ करे तो पामी जवाय छे. बधेय पोतानुं ज कारण छे.
सुखनुं धाम आत्मा छे, आश्चर्यकारी निधि आत्मामां छे — एम वारंवार आत्मानो महिमा लावी पुरुषार्थ उपाडवो, प्रमाद तोडवो. ३४८.
चक्रवर्ती, बळदेव अने तीर्थंकर जेवा ‘आ राज, आ वैभव — कांई नथी जोईतुं’ एम सर्वनी उपेक्षा करी एक आत्मानी साधना करवानी धूने एकला जंगलमां चाली नीकळ्या! जेमने बहारमां कोई वातनी खामी नहोती, जे इच्छे ते जेमने मळतुं हतुं, जन्मथी ज, जन्म थया पहेलां पण, इन्द्रो जेमनी सेवामां तत्पर