Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration).

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बहेनश्रीनां वचनामृत
१२३

असली वस्तुनो जआश्रय करवायोग्य छे, तेनुं ज शरण लेवायोग्य छे. तेनाथी ज सम्यग्दर्शनथी मांडीने मोक्ष सुधीनी सर्व दशाओ प्राप्त थाय छे.

आत्मामां सहजभावे रहेला ज्ञान, दर्शन, चारित्र, आनंद इत्यादि अनंत गुणो पण जोके पारिणामिकभावे ज छे तोपण तेओ चेतनद्रव्यना एक एक अंशरूप होवाने लीधे तेमने भेदरूपे अवलंबतां साधकने निर्मळता परिणमती नथी.

तेथी परमपारिणामिकभावरूप अनंतगुणस्वरूप अभेद एक चेतनद्रव्यनो जअखंड परमात्मद्रव्यनो आश्रय करवो, त्यां ज द्रष्टि देवी, तेनुं ज शरण लेवुं, तेनुं ज ध्यान करवुं, के जेथी अनंत निर्मळ पर्यायो स्वयं खीली ऊठे.

माटे द्रव्यद्रष्टि करी अखंड एक ज्ञायकरूप वस्तुने लक्षमां लई तेनुं अवलंबन करो. ते ज, वस्तुना अखंड एक परमपारिणामिकभावनो आश्रय छे. आत्मा अनंतगुणमय छे परंतु द्रव्यद्रष्टि गुणोना भेदोने ग्रहती नथी, ते तो एक अखंड त्रिकाळिक वस्तुने अभेदरूपे ग्रहण करे छे.

आ पंचम भाव पावन छे, पूजनीय छे. तेना आश्रयथी सम्यग्दर्शन प्रगटे छे, साचुं मुनिपणुं आवे