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छे, शान्ति अने सुख परिणमे छे, वीतरागता थाय छे, पंचम गतिनी प्राप्ति थाय छे. ३५३.
तीर्थंकरभगवंतोए प्रकाशेलो दिगंबर जैन धर्म ज सत्य छे एम गुरुदेवे युक्ति-न्यायथी सर्व प्रकारे स्पष्टपणे समजाव्युं छे. मार्गनी घणी छणावट करी छे. द्रव्यनी स्वतंत्रता, द्रव्य-गुण-पर्याय, उपादान – निमित्त, निश्चय-व्यवहार, आत्मानुं शुद्ध स्वरूप, सम्यग्दर्शन, स्वानुभूति, मोक्षमार्ग इत्यादि बधुं तेओश्रीना परम प्रतापे आ काळे सत्यरूपे बहार आव्युं छे. गुरुदेवनी श्रुतनी धारा कोई जुदी ज छे. तेमणे आपणने तरवानो मार्ग देखाड्यो छे. प्रवचनमां केटलुं घोळी घोळीने काढे छे! तेओश्रीना प्रतापे आखा भारतमां घणा जीवो मोक्षना मार्गने समजवानो प्रयत्न करी रह्या छे. पंचम काळमां आवो योग मळ्यो ते आपणुं परम सद्भाग्य छे. जीवनमां बधो उपकार गुरुदेवनो ज छे. गुरुदेव गुणथी भरपूर छे, महिमावंत छे. तेमनां चरणकमळनी सेवा हृदयमां वसी रहो. ३५४.
तरवानो उपाय बहारना चमत्कारोमां रहेलो