Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 31-33.

< Previous Page   Next Page >


Page 11 of 186
PDF/HTML Page 28 of 203

 

बहेनश्रीनां वचनामृत
११

सम्यग्द्रष्टिने ज्ञान-वैराग्यनी एवी शक्ति प्रगटी छे के गृहस्थाश्रममां होवा छतां, बधां ज कार्योमां ऊभा होवा छतां, लेप लागतो नथी, निर्लेप रहे छे; ज्ञानधारा ने उदयधारा बे जुदी परिणमे छे; अल्प अस्थिरता छे ते पोताना पुरुषार्थनी नबळाईथी थाय छे, तेना पण ज्ञाता रहे छे. ३१.

सम्यग्द्रष्टिने, आत्माने छोडीने बहार क्यांय सारुं लागतुं नथी, जगतनी कोई चीज सुंदर लागती नथी. जेने चैतन्यनो महिमा ने रस लाग्यो छे तेने बाह्य विषयोनो रस तूटी गयो छे, कोई पदार्थ सुंदर के सारा लागता नथी. अनादिना अभ्यासने लईने, अस्थिरताने लईने स्वरूपमां अंदर रही शकातुं नथी एटले उपयोग बहार आवे छे पण रस विनाबधुं निःसार, फोतरां समान, रस-कस वगरनुं होय एवा भावेबहार ऊभा छे. ३२.

जेने लागी छे तेने ज लागी छे’...परंतु बहु खेद न करवो. वस्तु परिणमनशील छे, कूटस्थ नथी; शुभाशुभ परिणाम तो थशे. तेने छोडवा जईश तो शून्य अथवा शुष्क थई जईश. माटे एकदम उतावळ न