वारंवार करतां शुभ भाव पण सहज थई जाय छे. परंतु पोतानो स्वभाव जे खरेखर सहज छे तेनो जीवने ख्याल आवतो नथी, खबर पडती नथी. उपयोगने सूक्ष्म करीने सहज स्वभाव पकडवो जोईए. ३५.
जे प्रथम उपयोगनो पलटो करवा मागे छे पण अंतरंग रुचिने पलटावतो नथी, तेने मार्गनो ख्याल नथी. प्रथम रुचिनो पलटो करे तो उपयोगनो पलटो सहज थई जशे. मार्गनी यथार्थ विधिनो आ क्रम छे. ३६.
‘हुं अबद्ध छुं’, ‘ज्ञायक छुं’ ए विकल्पो पण दुःखरूप लागे छे, शान्ति मळती नथी, विकल्प मात्रमां दुःख-दुःख भासे छे, त्यारे अपूर्व पुरुषार्थ उपाडतां, वस्तुस्वभावमां लीन थतां, आत्मार्थी जीवने बधा विकल्पो छूटी जाय छे अने आनंदनुं वेदन थाय छे. ३७.
आत्माने मेळववानो जेने द्रढ निश्चय थयो छे तेणे प्रतिकूळ संयोगोमां पण तीव्र ने करडो पुरुषार्थ उपाड्ये