थाय ज. अंदर वेदना सहित भावना होय तो मार्ग शोधे. ४१.
यथार्थ रुचि सहितना शुभ भावो वैराग्य अने उपशमरसथी तरबोळ होय छे; अने यथार्थ रुचि विना, तेना ते शुभ भावो लूखा अने चंचळतावाळा होय छे. ४२.
जेम कोई बाळक माताथी विखूटो पडी गयो होय तेने पूछीए के ‘तारुं नाम शुं?’ तो कहे ‘मारी बा’, तारुं गाम कयुं?’ तो कहे ‘मारी बा’, ‘तारां माता-पिता कोण?’ तो कहे ‘मारी बा’; तेम जेने आत्मानी खरी रुचिथी ज्ञायकस्वभाव प्राप्त करवो छे तेने दरेक प्रसंगे ‘ज्ञायकस्वभाव...ज्ञायकस्वभाव’ — एवुं रटण रह्या ज करे, तेनी ज निरंतर रुचि ने भावना रहे. ४३.
रुचिमां खरेखर पोताने जरूरियात लागे तो वस्तुनी प्राप्ति थया विना रहे ज नहि. तेने चोवीशे कलाक एक ज चिंतन, घोलन, खटक चालु रहे. जेम कोईने ‘बा’नो प्रेम होय तो तेने बानी याद, तेनी खटक निरंतर रह्या