Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 57-59.

< Previous Page   Next Page >


Page 20 of 186
PDF/HTML Page 37 of 203

 

२०

बहेनश्रीनां वचनामृत

एक वस्तु खोवाणी त्यां पोते आखो खोवाई गयो, रोकाई गयो; रूपिया, धन, शरीर, पुत्र आदिमां तुं रोकाई गयो. अरे! तुं विचार तो कर के तुं आखो दिवस क्यां रोकाई गयो! बहारमां ने बहारमां रोकाई गयो, त्यां भाई! आत्मप्राप्ति केवी रीते थाय? ५६.

पूज्य गुरुदेवना श्रीमुखेथी पोते जे तत्त्वने पकड्युं होय तेनुं मंथन करवुं जोईए. निवृत्तिकाळमां पोतानी परिणतिमां रस आवे तेवां पुस्तकोनुं वांचन करीने पोतानी लगनीने जागृत राखवी जोईए. आत्माना ध्येयपूर्वक, पोतानी परिणतिमां रस आवे तेवां विचार- मंथन करतां अंतरथी पोतानो मार्ग मळी जाय छे. ५७.

ज्ञानीने द्रष्टि-अपेक्षाए चैतन्य अने रागनी अत्यंत भिन्नता भासे छे, जोके ते ज्ञानमां जाणे छे के राग चैतन्यनी पर्यायमां थाय छे. ५८.

जे जीवने पोताना स्थूल परिणामने पकडवामां पोतानुं ज्ञान काम न करे ते जीव पोताना सूक्ष्म परिणाम क्यांथी पकडे? ने सूक्ष्म परिणाम पकडे नहि तो स्वभाव क्यांथी