ते आत्मतत्त्व ज एक शरण छे. बहारमां, पंच परमेष्ठी — अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय अने साधु — नमस्कार करवायोग्य छे केम के तेमणे आत्मानी साधना करी छे; तेओ मंगळरूप छे, तेओ लोकमां उत्तम छे, तेओ भव्यजीवोनां शरण छे. ६४.
देव-गुरुनी वाणी अने देव-शास्त्र-गुरुनो महिमा चैतन्यदेवनो महिमा जागृत करवामां, तेना ऊंडा संस्कार द्रढ करवामां तेम ज स्वरूपप्राप्ति करवामां निमित्तो छे. ६५.
बहारनुं बधुं थाय तेमां — भक्ति-उल्लासनां कार्य थाय तेमां पण — कांई आत्मानो आनंद नथी. आनंद तो तळमांथी आवे ते ज साचो छे. ६६.
दरेक प्रसंगमां शान्ति, शान्ति ने शान्ति ते ज लाभदायक छे. ६७.
पूज्य गुरुदेवनी वाणी मळे ते एक अनुपम सौभाग्य छे. मार्ग बतावनार गुरु मळ्या अने वाणी