Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 69-70.

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बहेनश्रीनां वचनामृत

सांभळवा मळी ते मुमुक्षुओनुं परम सौभाग्य छे. दररोज सवार-बपोर बे वखत आवुं उत्तम सम्यक्तत्त्व सांभळवा मळे छे एना जेवुं बीजुं कयुं सद्भाग्य होय? श्रोताने अपूर्वता लागे अने पुरुषार्थ करे तो ते आत्मानी समीप आवी जाय अने जन्म-मरण टळी जायएवी अद्भुत वाणी छे. आवुं श्रवणनुं जे सौभाग्य मळ्युं छे तेने मुमुक्षु जीवोए सफळ करी लेवुं योग्य छे. पंचम काळे निरंतर अमृतझरती गुरुदेवनी वाणी भगवाननो विरह भुलावे छे! ६८.

प्रयोजन तो एक आत्मानुं ज राखवुं. आत्मानो रस लागे त्यां विभावनो रस नीतरी जाय छे. ६९.

बधुं आत्मामां छे, बहार कांई नथी. तने कांई पण जाणवानी इच्छा थती होय तो तुं तारा आत्मानी साधना कर. पूर्णता प्रगटतां लोकालोक तेमां ज्ञेयरूपे जणाशे. जगत जगतमां रहे छतां केवळज्ञानमां बधुं जणाय छे. जाणनार तत्त्व पूर्णपणे परिणमतां तेनी जाण बहार कांई रहेतुं नथी अने साथे साथे आनंदादि अनेक नवीनताओ प्रगटे छे. ७०.