Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 71-73.

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बहेनश्रीनां वचनामृत
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धन्य ते निर्ग्रंथ मुनिदशा! मुनिदशा एटले केवळज्ञाननी तळेटी. मुनिने अंदरमां चैतन्यना अनंत गुण-पर्यायनो परिग्रह होय छे; विभाव घणो छूटी गयो होय छे. बहारमां, श्रामण्यपर्यायना सहकारी कारण- भूतपणे देहमात्र परिग्रह होय छे. प्रतिबंधरहित सहज दशा होय छे; शिष्योने बोध देवानो के एवो कोई पण प्रतिबंध होतो नथी. स्वरूपमां लीनता वृद्धिगत होय छे. ७१.

अखंड द्रव्यने ग्रहण करी प्रमत्त-अप्रमत्त स्थितिमां झूले ते मुनिदशा. मुनिराज स्वरूपमां निरंतर जागृत छे. मुनिराज ज्यां जागे छे त्यां जगत ऊंघे छे, जगत ज्यां जागे छे त्यां मुनिराज ऊंघे छे. ‘निश्चयनयाश्रित मुनिवरो प्राप्ति करे निर्वाणनी’. ७२.

द्रव्य तो निवृत्त ज छे. तेने द्रढपणे अवलंबीने भविष्यना विभावथी पण निवृत्त थाव. मुक्ति तो जेमना हाथमां आवी गई छे एवा मुनिओने भेदज्ञाननी तीक्ष्णताथी प्रत्याख्यान थाय छे. ७३.