२६
जो तारी गति विभावमां जाय छे तो तेने उतावळथी चैतन्यमां लगाड. स्वभावमां आववाथी सुख अने गुणोनी वृद्धि थशे; विभावमां जवाथी दुःख अने गुणोनी हानि थशे. माटे उतावळथी स्वरूपमां गति कर. ७४.
जेणे चैतन्यधामने ओळखी लीधुं ते स्वरूपमां एवा सूई गया के बहार आववुं गमतुं ज नथी. जेम पोताना महेलमां सुखेथी रहेता होय एवा चक्रवर्ती राजाने बहार आववुं गमतुं ज नथी तेम चैतन्यना महेलमां जे बिराजी गया तेने बहार आववुं मुश्केल पडे छे, बहार आववुं तेने बोजो लागे छे; आंख पासे रेती उपडाववा जेवुं आकरुं लागे छे. स्वरूपमां ज आसक्त थयो एने बहारनी आसक्ति तूटी गई छे. ७५.
छबी पाडवामां आवे छे त्यां जे प्रमाणे मुख परना भाव होय ते प्रमाणे कागळमां कुदरती चितराई जाय छे, कोई दोरवा जतुं नथी. एवी रीते कर्मना उदयरूप चितरामण सामे आवे त्यारे समजवुं के में जेवा भाव कर्या हता तेवुं आ चितरामण थयुं छे. जोके