Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 87-89.

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बहेनश्रीनां वचनामृत
३१

मारे परनी चिंतानुं शुं प्रयोजन? मारो आत्मा सदाय एकलो छे’ एम ज्ञानी जाणे छे. भूमिकानुसार शुभ भावो आवे पण अंदर एकलापणानी प्रतीतिरूप परिणति निरंतर बनी रहे छे. ८७.

लेप वगरनो हुं चैतन्यदेव छुं. चैतन्यने जन्म नथी, मरण नथी. चैतन्य तो सदा चैतन्य ज छे. नवुं तत्त्व प्रगटे तो जन्म कहेवाय. चैतन्य तो द्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावथी गमे तेवा उदयमां सदा निर्लेपअलिप्त ज छे. पछी चिंता शानी? मूळ तत्त्वमां तो कांई प्रवेशी शकतुं ज नथी. ८८.

मुनिराजने एकदम स्वरूपरमणता जागृत छे. स्वरूप केवुं छे? ज्ञान, आनंद आदि गुणोथी रचायेलुं छे. पर्यायमां समताभाव प्रगट छे. शत्रु-मित्रना विकल्प रहित छे; निर्मानता छे; ‘देह जाय पण माया थाय न रोममां’; सोनुं हो के तणखलुंबेय सरखां छे. गमे तेवा संयोग होयअनुकूळतामां खेंचाता नथी, प्रतिकूळतामां खेदाता नथी. जेम जेम आगळ वधे तेम तेम समरसभाव वधारे प्रगट थतो जाय छे. ८९.