Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 128-131.

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बहेनश्रीनां वचनामृत
४१

तारा नथी तो बहारना संयोग तो क्यांथी तारा होय? १२७.

आत्मा तो जाणनार छे. आत्मानी ज्ञाताधाराने कोई रोकी शकतुं नथी. भले रोग आवे के उपसर्ग आवे, आत्मा तो नीरोग ने निरुपसर्ग छे. उपसर्ग आव्यो तो पांडवोए अंदर लीनता करी, त्रणे तो केवळ प्रगटाव्युं. अटके तो पोताथी अटके छे, कोई अटकावतुं नथी. १२८.

भगवाननी आज्ञाथी बहार पग मूकीश तो डूबी जईश. अनेकान्तनुं ज्ञान कर तो तारी साधना यथार्थ थशे. १२९.

निजचैतन्यदेव पोते चक्रवर्ती छे, एमांथी अनंत रत्नोनी प्राप्ति थशे. अनंत गुणोनी ॠद्धि जे प्रगटे ते पोतामां छे. १३०.

शुद्धोपयोगथी बहार आवीश नहि; शुद्धोपयोग ते ज संसारथी ऊगरवानो मार्ग छे. शुद्धोपयोगमां न रही शके तो प्रतीत तो यथार्थ राखजे ज.