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प्रगट करतां ते रम्यता जणाय छे. स्वानुभूतिनी रम्यता पण कोई जुदी ज छे, अनुपम छे. १२३.
शुद्ध आत्मानुं स्वरूप बताववामां गुरुनां अनुभवपूर्वक नीकळेलां वचनो रामबाण जेवां छे, जेनाथी मोह भागी जाय छे अने शुद्धात्मतत्त्वनो प्रकाश थाय छे. १२४.
आत्मा न्यारा देशमां वसनारो छे; पुद्गलनो के वाणीनो देश तेनो नथी. चैतन्य चैतन्यमां ज रहेनार छे. गुरु तेने ज्ञानलक्षण द्वारा ओळखावे छे. ते लक्षण द्वारा अंदर जईने शोधी ले आत्माने. १२५.
पर्याय परनी द्रष्टि छोडी द्रव्य पर द्रष्टि दे तो मार्ग मळे ज. जेने लागी होय तेने पुरुषार्थ ऊपड्या विना रहेतो ज नथी. अंदरथी कंटाळे, थाके, खरेखरनो थाके, तो पाछो वळ्या विना रहे ज नहि. १२६.
कोई कोईनुं कांई करी शकतुं नथी. विभाव पण