समकित पहेलां पण विचार द्वारा निर्णय थई शके छे, ‘आ आत्मा’ एम पाको निर्णय थाय छे. भले हजु अनुभूति न थई होय तोपण पहेलां विकल्प सहितनो निर्णय होय छे खरो. १३६.
चैतन्यपरिणति ते ज जीवन छे. बहारनुं तो अनंत वार मळ्युं, अपूर्व नथी, पण अंदरनो पुरुषार्थ ते ज अपूर्व छे. बहार जे सर्वस्व मनाई गयुं छे ते पलटीने स्वमां सर्वस्व मानवानुं छे. १३७.
रुचि राखवी. रुचि ज काम करे छे. पूज्य गुरुदेवे घणुं दीधुं छे. तेओश्री अनेक रीते समजावे छे. पूज्य गुरुदेवनां वचनामृतोना विचारनो प्रयोग करवो. रुचि वधारता जवी. भेदज्ञान माटे तीखी रुचि ज काम करे छे. ‘ज्ञायक’, ‘ज्ञायक’, ‘ज्ञायक’ — एनी ज रुचि होय तो पुरुषार्थनुं वलण थया विना रहे नहि. १३८.
ऊंडाणमांथी लगनी लगाडीने पुरुषार्थ करे तो वस्तु मळ्या विना रहे नहि. अनादि काळथी लगनी लागी ज