Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 140-142.

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बहेनश्रीनां वचनामृत

नथी. लगनी लागे तो ज्ञान अने आनंद प्रगटे ज. १३९.

छे’, ‘छे’, ‘छे’ एम ‘अस्ति’ ख्यालमां आवे छे ने? ‘जाणनार’, ‘जाणनार’ ‘जाणनार’ छे ने? ते मात्र वर्तमान पूरतुं ‘सत्’ नथी. ते तत्त्व पोताने त्रिकाळ सत जणावी रह्युं छे, पण तुं तेनी मात्र ‘वर्तमान अस्ति माने छे! जे तत्त्व वर्तमानमां छे ते त्रिकाळी होय ज. विचार करतां आगळ वधाय. अनंत काळमां बधुं कर्युं, एक त्रिकाळी सत्ने श्रद्ध्युं नथी. १४०.

अज्ञानी जीवने अनादिनो विभावनो अभ्यास छे; मुनिने स्वभावनो अभ्यास वर्ते छे. पोते पोतानी सहज दशा प्राप्त करी छे. जरा पण उपयोग बहार जाय के तरत सहजपणे पोता तरफ वळी जाय छे. बहार आववुं पडे ते बोजोउपाधि लागे छे. मुनिओने अंदर सहज दशासमाधि छे. १४१.

हंमेशां आत्माने ऊर्ध्व राखवो. खरी जिज्ञासा होय तेने प्रयास थया विना रहेतो नथी. १४२.