४८
साथे तन्मयता तोडवी ते ज करवानुं छे. अनादि अभ्यास छे तेथी जीव पर साथे एकाकार थई जाय छे. पूज्य गुरुदेव मार्ग तो खुल्लेखुल्लो बतावी रह्या छे. हवे जीवे पोते पुरुषार्थ करीने, परथी जुदो आत्मा अनंत गुणोथी भरेलो छे तेमांथी गुणो प्रगट करवाना छे. १५६.
मोटा पुरुषनी आज्ञा मानवी, तेमनाथी डरवुं, ए तो तने तारा अवगुणथी डरवा जेवुं छे; तेमां तारा क्रोध, मान, माया, लोभ, राग-द्वेष आदि अवगुण दबाय छे. माथे मोटा पुरुष विना तुं कषायना रागमां — तेना वेगमां तणाई जवानो संभव छे अने तेथी तारा अवगुण तुं स्वयं जाणी शके नहि. मोटा पुरुषनुं शरण लेतां तारा दोषोनुं स्पष्टीकरण थशे अने गुणो प्रगट थशे. गुरुनुं शरण लेतां गुणनिधि चैतन्यदेव ओळखाशे. १५७.
हे जीव! सुख अंदरमां छे, बहार क्यां व्याकुळ थईने फांफां मारे छे? जेम झांझवांमांथी कदी कोईने जळ मळ्युं नथी तेम बहार सुख छे ज नहि. १५८.
गुरु तारा गुणो खिलववानी कळा देखाडशे. गुरु-