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द्रव्य सदा निर्लेप छे. पोते जाणनार जुदो ज, तरतो ने तरतो छे. जेम स्फटिकमां प्रतिबिंबो देखावा छतां स्फटिक निर्मळ छे, तेम जीवमां विभावो जणावा छतां जीव निर्मळ छे — निर्लेप छे. ज्ञायकपणे परिणमतां पर्यायमां निर्लेपता थाय छे. ‘आ बधा जे कषायो — विभावो जणाय छे ते ज्ञेयो छे, हुं तो ज्ञायक छुं’ एम ओळखे — परिणमन करे तो प्रगट निर्लेपता थाय छे. १६२.
आत्मा तो चैतन्यस्वरूप, अनंत अनुपम गुणवाळो चमत्कारिक पदार्थ छे. ज्ञायकनी साथे ज्ञान ज नहि, बीजा अनंत आश्चर्यकारी गुणो छे जेनो कोई अन्य पदार्थ साथे मेळ खाय नहि. निर्मळ पर्याये परिणमतां, जेम कमळ सर्व पांखडीए खीली ऊठे तेम आत्मा गुणरूप अनंत पांखडीए खीली ऊठे छे. १६३.
चैतन्यद्रव्य पूर्ण नीरोग छे. पर्यायमां रोग छे. शुद्ध चैतन्यनी भावना पर्यायरोग चाल्यो जाय एवुं उत्तम औषध छे. शुद्ध चैतन्यभावना ते शुद्ध परिणमन छे, शुभाशुभ परिणमन नथी. तेनाथी अवश्य संसाररोग