Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 172-174.

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बहेनश्रीनां वचनामृत
५३

चैतन्यनो महिमा अने संसारनो महिमा बे साथे न रही शके. केटलाक जीवो मात्र क्षणिक वैराग्य करे के संसार अशरण छे, अनित्य छे, तेमने चैतन्यनी समीपता न थाय. पण चैतन्यना महिमापूर्वक जेने विभावोनो महिमा छूटी जाय, चैतन्यनी कोई अपूर्वता लागवाथी संसारनो महिमा छूटी जाय, ते चैतन्यनी समीप आवे छे. चैतन्य कोई अपूर्व चीज छे; तेनी ओळखाण करवी, तेनो महिमा करवो. १७१.

जेम कोई राजमहेलने पामी पाछो बहार आवे तो खेद थाय, तेम सुखधाम आत्माने पामी बहार आवी जवाय तो खेद थाय छे. शांति अने आनंदनुं स्थान आत्मा ज छे, तेमां दुःख अने मलिनता नथीएवी द्रष्टि तो ज्ञानीने निरंतर रहे छे. १७२.

आंखमां कणुं न समाय, तेम विभावनो अंश होय त्यां सुधी स्वभावनी पूर्णता न थाय. अल्प संज्वलन- कषाय पण छे त्यां सुधी वीतरागता अने केवळज्ञान न थाय. १७३.

हुं छुं चैतन्य.’ जेने घर मळ्युं नथी एवा माणसने