Benshreena Vachanamrut-Gujarati (Devanagari transliteration). Bol: 168-171.

< Previous Page   Next Page >


Page 52 of 186
PDF/HTML Page 69 of 203

 

५२

बहेनश्रीनां वचनामृत

थाय अने केवळज्ञान प्रगटी परिपूर्ण मुक्तिपर्याय प्राप्त थाय. १६७.

सम्यग्दर्शन थतां ज जीव चैतन्यमहेलनो मालिक थई गयो. तीव्र पुरुषार्थीने महेलमांनो अस्थिरतारूप कचरो काढतां ओछो वखत लागे, मंद पुरुषार्थीने वधारे वखत लागे; परंतु बंने वहेलामोडा बधो कचरो काढी केवळज्ञान अवश्य प्राप्त करशे ज. १६८.

विभावोमां अने पांच परावर्तनोमां क्यांय विश्रांति नथी. चैतन्यगृह ज खरुं विश्रांतिगृह छे. मुनिवर तेमां वारंवार निर्विकल्पपणे प्रवेशी विशेष विश्राम पामे छे. बहार आव्यान आव्या ने अंदर जाय छे. १६९.

एक चैतन्यने ज ग्रहण कर. बधाय विभावोथी परिमुक्त, अत्यंत निर्मळ निज परमात्मतत्त्वने ज ग्रहण कर, तेमां ज लीन था, एक परमाणुमात्रनी पण आसक्ति छोडी दे. १७०.

एक म्यानमां बे तलवार समाई शकती नथी.