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थाय अने केवळज्ञान प्रगटी परिपूर्ण मुक्तिपर्याय प्राप्त थाय. १६७.
सम्यग्दर्शन थतां ज जीव चैतन्यमहेलनो मालिक थई गयो. तीव्र पुरुषार्थीने महेलमांनो अस्थिरतारूप कचरो काढतां ओछो वखत लागे, मंद पुरुषार्थीने वधारे वखत लागे; परंतु बंने वहेलामोडा बधो कचरो काढी केवळज्ञान अवश्य प्राप्त करशे ज. १६८.
विभावोमां अने पांच परावर्तनोमां क्यांय विश्रांति नथी. चैतन्यगृह ज खरुं विश्रांतिगृह छे. मुनिवर तेमां वारंवार निर्विकल्पपणे प्रवेशी विशेष विश्राम पामे छे. बहार आव्या — न आव्या ने अंदर जाय छे. १६९.
एक चैतन्यने ज ग्रहण कर. बधाय विभावोथी परिमुक्त, अत्यंत निर्मळ निज परमात्मतत्त्वने ज ग्रहण कर, तेमां ज लीन था, एक परमाणुमात्रनी पण आसक्ति छोडी दे. १७०.
एक म्यानमां बे तलवार समाई शकती नथी.