Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 159.

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1005 of 1906

 

KRAMBADDH
१५२अमृत वाणी (भाग-४)
ट्रेक-१५९ (audio) (View topics)

समाधानः- .. क्रमबद्ध है..

मुमुक्षुः- क्रमबद्धका स्वरूप उसने ही जाना है।

समाधानः- उसने ही वास्तविकरूपमें जाना है। जो पुरुषार्थ करता है, उसीने क्रमबद्धका स्वरूप जाना है, उसे ही क्रमबद्ध है।

मुमुक्षुः- उसीका सच्चा क्रमबद्ध है।

समाधानः- उसका सच्चा क्रमबद्ध है।

मुमुक्षुः- दूसरा क्रमबद्ध-क्रमबद्ध बोलता है, लेकिन उसका क्रमबद्ध मात्र कल्पना ही है।

समाधानः- वह कल्पना है। फिर क्रमबद्ध अर्थात बाह्य पदार्थ जैसे होने हों वैसे हो, कर्ताबुद्धि छोड दे कि मैं यह नहीं करता हूँ, वह क्रमबद्ध अलग। स्वभावका क्रमबद्ध तो पुरुषार्थपूर्वक ही होता है।

मुमुक्षुः- ये तो थोडा दिलासा लेनेकी बात है।

समाधानः- हाँ, बाहरका जो होनेवाला है वह क्रमबद्ध ही है। बाह्य संयोग अनुकूलता- प्रतिकूलताके वह सब तो क्रमबद्ध है। परन्तु अन्दर स्वभावपर्याय प्रगट होनी वह तो पुरुषार्थपूर्वक प्रगट होती है।

मुमुक्षुः- वह मुद्देकी बात है।

समाधानः- वह पुरुषार्थपूर्वक क्रमबद्ध होता है। पुरुषार्थ बिना क्रमबद्ध नहीं होता। अपनेआप हो जाता है, उसमें पुरुषार्थ नहीं होता और ऐसे ही हो जाता है, ऐसा नहीं है। जिसे स्वभाव प्रगट करना हो उसकी दृष्टि तो मैं स्वभावकी ओर जाऊँ, ऐसी उसकी भावना होती है। उसकी ज्ञायक-ओरकी धारा होती है। उसे ऐसा नहीं होता है कि भगवानने जैसा देखा होगा वैसा होगा। ऐसा नहीं, उसे अंतरमें परिणति प्रगट करुँ ऐसा होता है। अंतर शुद्धिकी पर्याय प्रगट होनेकी ओर उसकी पुरुषार्थकी गति परिणमती है। जिसकी पुरुषार्थकी गति अपनी ओर नहीं है, उसे स्वभावकी ओरका क्रमबद्ध होता ही नहीं।

मुमुक्षुः- मुख्यता तो पुरुषार्थकी ही है।