Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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१५४अमृत वाणी (भाग-४)

समाधानः- स्वभाव परिणति प्रगट हुयी तो क्रमबद्ध। नहीं तो तूने क्रमबद्ध जाना ही नहीं।

मुमुक्षुः- गुुरुदेवकी शैली ऐसी ही आयी है।

समाधानः- जिज्ञासुकी कोई बात बीचमें नहीं। दो विभाग, बस।

मुमुक्षुः- आपने तो जिज्ञासुका बहुत सुन्दर स्पष्टीकरण किया। आपके वचनामृतमें भी बहुत बातें जिज्ञासुकी स्वभाव परिणतिसे ही प्रवचनमें आयी है। भावना आदिकी सब बातें हैं, ज्ञानीकी भावना ऐसे आयी है।

समाधानः- दो भाग ही कर देते थे। बीचवाली यहाँसे वहाँ, यहाँसे वहाँ प्रश्नेत्तरीकी कोई बात ही नहीं। दो विभाग ही कर देते थे।

मुमुक्षुः- शुद्ध परिणतिका क्रम शुरू होता है, वही बात लेते थे।

समाधानः- बस, वही बात। यहाँ सब जिज्ञासाके प्रश्न करे इसलिये जिज्ञासुकी बात बीचमें (आ जाती है)। आचार्य, गुरुदेव सब शास्त्रमें दो भाग-एक पुदगल औरएक आत्मा। बस! ऐसी ही बात। रागको यहाँ डाल दिया, स्वभावको इस ओर रख दिया।

मुमुक्षुः- रागको जडमें और पुदगलमें डाल दिया। और वहाँ तककी उसके षटकारक उसकी पर्यायमें, पर्यायके षटकारक.... आत्मा शुद्ध है। .. वह क्या आता है? पर्यायके षटकारक पर्यायमें? ऐसे तो वस्तुको छः कारकोंकी शक्ति है। उस हिसाबसे तो वस्तु दर्शन एकदम बराबर है। छः गुण है, छः शक्तियाँ हैं।

समाधानः- दो द्रव्य स्वतंत्र। इस द्रव्यके षटकारक इसमें और उस द्रव्यके षटकारक उसमें। दोनों द्रव्यके षटकारक तो एकदम भिन्न स्वतंत्र है। फिर पर्याय एक अंश है। पर्याय अंशरूप (होने पर भी) स्वतंत्र है। ऐसा बतानेके लिये उसके षटकारक कहे। परन्तु जितना द्रव्य स्वतंत्र (है), उतनी पर्याय स्वतंत्र है, ऐसा उसका अर्थ नहीं है। उसी द्रव्यकी पर्याय है। और उस द्रव्यके आश्रयसे वह पर्याय होती है। चेतनकी चेतन पर्याय। वह जो स्वभावपर्याय होती है वह उसकी पर्याय है। इसलिये दो द्रव्य जितने षटकारक रूपसे स्वतंत्र हैं, उसी द्रव्यकी पर्याय, उतने द्रव्य और पर्याय स्वतंत्र नहीं है। फिर भी एक अंश है और एक त्रिकाली द्रव्य शाश्वत है। अनादिअनन्त द्रव्य है और वह क्षणिक पर्याय है। परन्तु वह एक अंश है, इसलिये उसकी स्वतंत्रता बतानेके लिये उसके षटकारक कहे। बाकी उसका अर्थ ऐसा नहीं है कि द्रव्य जितना स्वतंत्र है, उतनी पर्याय (स्वतंत्र है)। पर्याय उतनी स्वतंत्र हो तो दो द्रव्य हो गये।

मुमुक्षुः- वह भी द्रव्य हो जाय। समाधानः- हाँ, वह भी द्रव्य हो गया और यह भी द्रव्य हो गया। ऐसा उसकाअर्थ नहीं है। उसे उसकी स्वतंत्रता बताते हैं कि पर्याय भी एक अंशरूपसे स्वतंत्र है। परन्तु

Paryay Ek Ansh hai, SATT hai yeh Apeksha se Paryay Ke Kshatkarak ki baat ati
hai lekin usse Paryay Sarvatha bhinn hai aisa nahi hai.