Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-
ट्रेक-१६०

१६० है? पर्यायमें आता है?

समाधानः- वह गुणमेंसे प्रगट होता है। आनन्द..

मुमुक्षुः- आनन्दगुण कहाँसे प्रगट होता है?

समाधानः- आनन्दगुण है वह अपना स्वभाव है। स्वभावमेंसे पर्याय प्रगट होती है।

मुमुक्षुः- वेदन पर्यायमें होता है?

समाधानः- वेदन पर्यायमें होता है, परन्तु वह प्रगट होता है, उसके आनन्दगुणमेंसे पर्याय प्रगट होती है। उसमेंसे प्रगट होता है। चैतन्य पूरा ज्ञायक है, ज्ञायकमें अनन्त गुण है। ज्ञान है, दर्शन, चारित्र, आनन्द, बल आदि अनन्त गुण हैं। आनन्द आनन्दगुणमेंसे प्रगट होता है। और वह ज्ञायक आत्माका गुण है। ज्ञान ज्ञानमेंसे प्रगट होता है, दर्शन दर्शनमेंसे, आनन्द आनन्दमेंसे, बल बलमेंसे प्रगट होता है। परन्तु वह अभेद आत्माके गुण अलग टूकडे नहीं है, वह आत्माका ही स्वभाव है। अनन्त गुणसे भरा आत्मा, उसमेंसे पर्याय प्रगट होती है। वेदन भले पर्यायका हो, परन्तु वह पर्याय प्रगट होती है, चैतन्यके गुणमेंसे प्रगट होती है। चैतन्यके गुणमेंसे प्रगट होती है।

मुमुक्षुः- अनन्त गुण है तो अनन्त गुणका वेदन पर्यायमें हो सकता है?

समाधानः- पर्यायमें होता है।

मुमुक्षुः- पर्यायमें एक साथ होता है?

समाधानः- पर्यायमें एक साथ होता है। उसके ज्ञानमें जान सकता है कि ये अनन्त गुणकी पर्याय उसके वेदनमें आती है। उसके नाम भले नहीं आते हो, परन्तु उसे वेदनमें जान सकता है। चेतन-ओर दृष्टि रखनेसे विकल्प टूटकर जो स्वानुभूति होती है, उस स्वानुभूतिमें अनन्त गुणकी पर्यायका वेदन होता है। वेदन पर्यायका है। पर्यायमें वेदन होता है, परन्तु वह विकल्प टूटकर होता है। निर्विकल्प दशामें होता है। सविकल्पतामें तो उसे भेदज्ञानकी धारा प्रगट होती है। ज्ञायकता।

अनादिअनन्त है। शाश्वत तत्त्व है। उसे किसीने बनाया नहीं है। स्वयं शाश्वत है, अनादिअनन्त है। उस चैतन्यको पहिचाननेकी जरूरत है। आत्मा ज्ञानस्वभावसे भरा ज्ञायकतत्त्व है। जाननेवाला है। ये कुछ जानता नहीं है। अन्दर जाननेवाला चैतन्यतत्त्व भिन्न है। विकल्प हो वह भी अपना स्वभाव नहीं है। आत्मा चैतन्यतत्त्व अनादिअनन्त है। आत्मा स्वयं सर्वगुणसंपन्न अनन्त शक्तिओंसे भरा है। उसे किसीने बनाया नहीं है। कोई ईश्वर हो और उसे बनाये, वह तो स्वतःसिद्ध वस्तु है। स्वयं चैतन्यतत्त्वको पहचाने, अन्दर उसे लगन लगे तो पीछाने। देव-गुरु-शास्त्र उसे बताते हैं, जिनेन्द्र देव, गुरु और शास्त्र। गुरुकी प्रत्यक्ष वाणी बरसती थी, कोई अपूर्व मार्ग दर्शाते थे। उस मार्ग पर जाय तो वस्तु समझमें आये ऐसा है। कोई अलग ही मार्ग है अन्दर। दोनों तत्त्व ही भिन्न-