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मुमुक्षुः- बुद्धिपूर्वक तो मानो संयोग छोडकर मुंबई छोडकर सोनगढ चलते हैं। तो अपना उस प्रकारका लक्ष्य छूट जाय, अमुक हो जाय। वह प्रयत्न भी होता है। यहाँ भी बुद्धिपूर्वकका प्रयत्न शास्त्रमेंसे पढकर विचार करनेका मन होता है।
समाधानः- फिर भी अटकता है। रुचि वहीं है। जितनी चाहिये उतनी अन्दर तीव्रता नहीं है। जितना चाहिये उतना अंतरमेंसे वापस नहीं मुडता है। जितना चाहिये उतना स्वयंको ग्रहण नहीं करता है। तो उतनी विरक्ति आती नहीं, उतनी महिमा आती नहीं। इसलिये उसमें क्षति रहती है। मन्दता रहती है।
सो रहा हो और जागृत होनेका निर्णय किया हो, परन्तु जागता हूँ, जागता हूँ करे, परन्तु प्रमादके कारण जागृत नहीं होता। जागना है, जागना है, उठना है, लेकिन स्वयं प्रमादके कारण जितनी चाहिये उतनी अपनी ओर ज्ञान, विरक्ति, महिमा जितनी चाहिये उतनी, जितना कारण देना चाहिये उतना करता नहीं। इसलिये होता नहीं। अपनी आलसके कारण नहीं हो रहा है।
जितनी तीव्रता चाहिये उतनी (नहीं है)। वहाँ अटकता है। अटकता है तो उतनी अंतरमेंसे चटपटी लगनी चाहिये कि वहाँ अटक ही न सके और अपनेमेें चला जाय, उतनी अन्दरसे लगन लगनी चाहिये। तो वहाँसे भिन्न पडे। बादमें अल्प अस्थिरता रहती है, परन्तु उसकी दृष्टि वहाँ थँभती नहीं और वहाँसे छूटता नहीं है उसका कारण स्वयंका ही है। उसका आश्रय प्रबलपने ले और इसका आश्रय छोड दे तो निरालंबन हो जाय। अपना आश्रय सहज... आश्रयका जोर हो तो वह छूट जाता है। स्वयं छोडे तो छूटे। स्वयं ही नहीं छोडता है, अपना कारण है। द्रव्यदृष्टि वह तो उसमें गया नहीं है, उसे ग्रहण नहीं किया है, परन्तु पर्यायमें हर जगह अटका है।
मुमुक्षुः- उसके लिये कुछ...?
समाधानः- विशेष महिमा आये उसके लिये, ज्ञायकमें ही सर्वस्व है, उसकी दृढता करे। इसमें सर्वस्व नहीं है, चैतन्यमें सब है। भले बुद्धिपूर्वक स्वयं विचार करके करे, परन्तु अन्दरसे पलटनेके लिये तो उसकी विशेष तैयारी होनी चाहिये। परिणति पलटे। बुद्धिमें आये लेकिन जब तक परिणति नहीं पलटती, तब तक कचास है। परिणति एकत्वकी ओर ढल रही है तो अपनेमें कचास है। बुद्धिमें निर्णय करे कि महिमा इसमें है, सुख इसमें है, इसमें सुख नहीं है, वहाँ तक स्वयं आता है, परन्तु परिणति पलटती नहीं, वह अपनी कचास है।
.. बारंबार उसकी परिणति रहा करे। बारंबार ऐसा करते-करते पलटे। परन्तु ज्ञायककी ओर टिके कब? उतनी अपनी ओर रहनेकी जरूरत लगे, यही जरूरतवाला है, दूसरी ओरसे वापस हटे तो हो। परिणतिका पलटना अपने पुरुषार्थसे होता है। गुरुदेवने सबको