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मुमुक्षुः- .. मुक्तिका पात्र..
समाधानः- भविष्यमें मुक्तिका पात्र होता है। भविष्य कितना लेना वह अपनी योग्यता पर (आधारित है)। ... पुरुषार्थ प्रगट हो। करनेवालेको तो ऐसा ही होता है कि मैं पुरुषार्थ करुँ। आधार नहीं है, स्वयंको भावना होती है।
मुमुक्षुः- ... ज्ञायकको जैसा है वैसा समझकर आत्म सन्मुख जितना अभ्यास बढे, उतना समीप आये ऐसा कुछ?
समाधानः- ज्ञायकका अभ्यास करे तो समीपता होती है। विशेष-विशेष ज्ञायकका अभ्यास करे तो समीपता होती है। परन्तु उसमें मन्दता रहे तो देर लगती है, तीव्रता हो तो जल्दी हो। लेकिन समीप होता है। ज्ञायकका अभ्यास करनेसे समीप होता है। ... मैं यह नहीं हूँ, द्रव्यदृष्टि... चैतन्य पर दृष्टि करनेका प्रयत्न करे। मैं ज्ञायक हूँ, ऐसा प्रयत्न बारंबार करे तो समीप होता है। परन्तु उसमें मन्दता-मन्दता रहा करे तो दर लगे, उसमें तीव्रता हो तो जल्दी हो।
मुमुक्षुः- ज्ञायककी रुचि बढे वैसे ज्ञानमें सूक्ष्मता आती जाती है?
समाधानः- ज्ञायककी रुचि बढ तो ज्ञानकी सूक्ष्मता होती है। ज्ञायकको ग्रहण करनेकी सूक्ष्मता होती है, परन्तु उसमें दूसरा ज्ञान ज्यादा होता है, ऐसा उसका अर्थ नहीं है।
मुमुक्षुः- ... वह प्रकार उसे बराबर सहज ही यथार्थ आये। रुचि बढने पर ...का प्रकार भी सहज ही यथार्थ आये।
समाधानः- किसका प्रकार? .. यथार्थ आये। ज्ञायककी रुचि यथार्थ हो तो उसका विवेक भी यथार्थ ही होता है। स्व-परका विवेक करे। यथार्थ ज्ञान, यथार्थ मार्ग ग्रहण हो, सब यथार्थ हो। जिसकी रुचि यथार्थ, उसका सब यथार्थ होता है। स्वभावसे पूर्ण है, यथार्थ ज्ञान.. यथार्थ रुचि हो उसमें ज्ञान भी यथार्थ होता है।
मुमुक्षुः- निमित्तका भी विवेक रहे?
समाधानः- हाँ, उसका भी विवेक आता है। निमित्त-ओरका विवेक, स्वभावका ग्रहण आदि सब आता है। निश्चय-व्यवहारकी संधि जैसी है वैसी आये।