१९४ भी भविसे अभवि कम हैं। जैसे मुँगका दाना होता है, वह मुँग सीझते हैं, उसमें कुछ मुँगमें नमी नहीं होती, वैसे अभवि कम होते हैं। परन्तु जिसे आत्माकी रुचि लगे वह अभवि नहीं होते।
मुमुक्षुः- अस्तित्वका स्वीकार ...?
समाधानः- आत्माके अस्तित्वका स्वीकार... शुभाशुभ भाव परसे जिसकी रुचि उठ जाय, जिसे अंतरमें विभावभावकी रुचि नहीं होती। आत्मा-ओरकी रुचि होती है। आत्माकी अपूर्वता लगे, आत्मा ही सर्वस्व है ऐसा लगे तो वह अभवि नहीं होता।
गुरुदेवने कहा उसकी अपूर्वता अंतरमें लगे और आत्मा कोई अलग गुरुदेवने बताया, वह आत्मा अलग है और उस ओरका पुरुषार्थ, उस ओरकी रुचि, कोई शुभाशुभ भावमें जिसे रुचि नहीं लगती, वह अभवि नहीं होता।
मुमुक्षुः- दिनमें स्वाध्याय कितने घण्टे करना चाहिये?
समाधानः- अपनी रुचि अनुसार, स्वयंको समय मिले उस अनुसार। जितना समय मिले उतना। नहीं तो अंतरमें स्वयंमें विचार करना। कुछ समय स्वाध्यायका मिले तो अच्छी बात है।
मुमुक्षुः- दिनमें चार-पाँच घण्टे अपने लिये निकाल ले तो?
समाधानः- तो ज्यादा अच्छी बात है। चार-पाँच घण्टे अपने लिये निकाल ले, स्वाध्यायके लिये तो अच्छी बात है। करनेका तो वही है न जीवनमें। संसारमें तो सब चलता रहता है। विचार, वांचन सब। देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा, अंतर आत्माकी महिमा, रुचि...
मुमुक्षुः- जीव कहीं भी बैठा हो, लेकिन अपने आत्माकी ओर ... मोड देना।
समाधानः- हाँ। आत्मा-ओरकी रुचि हो तो वह अभवि नहीं होता।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- रुचि और जोश हो तो वह स्वयं कर सकता है।
मुमुक्षुः- यहींका झुकाव और यहींका..
समाधानः- भावना रहे कि देव-गुरु-शास्त्रका सान्निध्य मिले, ऐसी भावना रहे। परन्तु न मिले तो क्षेत्रसे दूर हो तो वह अंतरमें अपना पुरुषार्थ करनेमें कोई रोक नहीं सकता, कोई बाह्य क्षेत्र। बाह्य संयोग अच्छे हो, सत्संग आदि हो तो ज्यादा अच्छा है। लेकिन वह नहीं हो तो स्वयं अपना कर सकता है। पुरुषार्थ, अपना पुरुषार्थ तीव्र चाहिये।
मुमुक्षुः- गुण, पर्याय स्वतंत्र है, ऐसा बोलते हैं। गुणोंका समूह द्रव्य है। तो वह कैसे स्वतंत्र हैं?