Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

२१२ बाह्य वस्तु ज्ञेयरूपसे ग्रहण (करता है)। अन्दर आत्माको ग्रहण करे वह उपयोग सूक्ष्म है। आत्माका स्वभाव पहिचानकर अंतरमें जाय, वह उपयोग सूक्ष्म है। सूक्ष्म होकर अंतरमें जाय तो स्वयंको ग्रहण कर सकता है। बाकी बाह्य वस्तु ग्रहण करे या स्थूल- स्थूल विचार करे वह सब उपयोग स्थूल है। अंतरमें निज चैतन्यद्रव्यको ग्रहण करना, वह उपयोग सूक्ष्म है।

मुमुक्षुः- ग्यारह अंग तकको स्थूल उपयोग कहा। परमागमसारमें है कि ग्यारह अंगका उपयोग स्थूल है और चैतन्यस्वभावको ग्रहण करता है वह उपयोग सूक्ष्म है।

समाधानः- (वह) उपयोग सूक्ष्म है। चैतन्यद्रव्यको ग्रहण नहीं किया है इसलिये उपयोग स्थूल है। निज चैतन्यको ग्रहण करे तो उपयोग सूक्ष्म है। ग्यारह अंगका ज्ञान किया, उसमें सब जाना, परन्तु आत्माको ग्रहण नहीं किया तो सब स्थूल है। अन्दरमें आत्मा चैतन्यतत्त्व ग्रहण (नहीं किया)। भले उसे श्रुतज्ञान हुआ, द्रव्य-गुण-पर्याय जाने, सब जाना तो सही, लेकिन मैं यह चैतन्य हूँ, ऐसे ग्रहण नहीं किया। वह उपयोग स्थूल है।

उपयोग स्वसन्मुख नहीं मुडा, उपयोग बाहर ही रहा इसलिये उपयोग स्थूल है। अंतरमें चैतन्यको ग्रहण करे तो उपयोग सूक्ष्म है। कुछ भी जाना, तो भी उपयोगको स्थूल कहनेमें आता है। क्योंकि स्वयंको ग्रहण नहीं किया इसलिये। स्वसन्मुख-अपनी ओर दिशा मुडी इसलिये उपयोग बाहर है। बाहर रहा हुआ उपयोग स्थूल है। ग्यारह अंगमें उसे सब आ गया। द्रव्य-गुण-पर्याय सब, अनेक जातकी बातें, श्रुतज्ञानकी बातें जानी, चैतन्यकी ओर उपयोग नहीं गया, निज स्वभावको ग्रहण नहीं किया, इसलिये स्थूल है। ग्यारह अंगमें नौ तत्त्व, छः द्रव्य, द्रव्य-गुण-पर्याय सब जाना।

मुमुक्षुः- स्थूल उपयोगके सम्बन्धमें तो आप जो विस्तार करते हो, वह तो ख्यालमें आवे। परन्तु सूक्ष्म उपयोगका विषय, उनके प्रश्नमें वह है। हमारे वहाँ चला था। इसलिये पूछा।

समाधानः- अपने अंतरमें उपयोग जाय वह उपयोग सूक्ष्म है। स्वसन्मुख जाय कि मैं यह चैतन्य हूँ, यह चैतन्यद्रव्य हूँ, ज्ञायक हूँ, ऐसे निज स्वभावकी ओर जाय, उसकी दिशा बदले। उसमें दिशा बाहर ही है। दिशा अंतरमें जाय, अपने अरूपी तत्त्वको ग्रहण करे तो उपयोग सूक्ष्म है। अंतरमें जाकर स्वभावको ग्रहण करे तो सूक्ष्म है। धीरा होकर अंतरमें यह स्वभाव है और यह विभाव है। ऐसे स्वयं अपने स्वभावको ग्रहण करे तो सूक्ष्मता कहनेमें आती है।

मुमुक्षुः- अरूपी तत्त्वको ग्रहण करनेके लये लक्षणका भावभासन पहले विकल्पात्मक होना चाहिये, ऐसा कुछ है?

समाधानः- लक्षण स्वयं स्वयंको पहिचाने। भावभासन। लक्षण, भावभासन वह