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मुमुक्षुः- शान्ति अर्थात समाधि रहे।
समाधानः- हाँ, आंशिक ज्ञायकके वेदनकी परिणति रहनी चाहिये न। ... करनेका स्वयंको बाकी रहता है। बाकी सच्चा ज्ञान... गुरुदेवने परम उपकार किया है। सबको उपकार करके कहाँ पहुँचा दिये हैं! यथार्थ ज्ञान... इसके पहले भी कोई आया था कि गुरुदेवने कहाँ... गुरुदेवने सबको कितनी यथार्थ दृष्टि करवायी है। ऐसा देते हैं वैसी तो हमारे गुरुदेवने सबको यथार्थ दृष्टि दी है। कहीं गलत जगहमें नहीं फँसकर एक ज्ञायक सत्य है। गुरुदेवने यथार्थ दृष्टि दी है। सब ऐसा माने कि निमित्तमात्र हूँ, कर नहीं सकता, ऐसा बोले। लेकिन अंतर परिणति होनी एक अलग वस्तु है। सबको दिया। आधे घण्टे, एक घण्टेमें सबको दिया जाता है। ऐसे दिया जाता हो तो अनन्त कालसे क्यों नहीं हुआ? शास्त्रोंमें उसकी दुर्लभता कितनी बतायी है।
गुरुदेवने पामरको पार उतारा, ऐसा (कार्य) किया है। .. सबको दिये हैं। सब भूले हुएको मार्ग दिया है। कहीं भूला न पडे (ऐसे) दिव्यचक्षु दे दिये हैं। स्वयंको चलनेका बाकी रहा है। बाकी किस रास्ते पर जाना, वह बता दिया है। क्रियामें मत अटकना, शुभाशुभ भावमें.. शुभभावमें मैंने इतना किया, यह किया, वह किया, इतना वांचन किया, इतना रटन किया, इतना पढा, मन्दिर गया, पूजा की... कहीं अटक जाय ऐसा नहीं रखा है। पर्यायमात्र... पर्यायका लक्ष्य करनेमें अटकेगा तो शाश्वत द्रव्य ग्रहण नहीं कर सकेगा। मात्र ज्ञायकको जानो। बाह्य जाननेसे, एक-एक ज्ञेयको, ऐसे खण्ड-खण्ड ज्ञानको जाननेसे भी अखण्ड पकडमें नहीं आयगा। अखण्डको ग्रहण कर। कहाँसे कहाँ लाकर रख दिया है। कहाँ ये बात सब करते और कहाँ वह बात है। ऐसी बात उसे सूक्ष्म लगे, गुरुदेवकी बात तो सूक्ष्मसे सूक्ष्म है। द्रव्य, गुण, पर्याय।
.. परन्तु अन्दर द्रव्यको ग्रहण करना। क्षणिक पर्याय जो हो रही है। पर्यायमें भी अटकना नहीं। कहाँ गुरुदेवने लाकर रख दिया है। भेदज्ञान करना। समयसारमें (आता है), नयपक्षोंसे अतिक्रान्त। किसी भी नयपक्षका ग्रहण नहीं करना।
मुमुक्षुः- एक तो अनादिका अनजाना मार्ग...
समाधानः- उसमें कहीं-कहीं अटक गया है। भेदज्ञान होना चाहिये, जागते, सोते, स्वप्नमें। तो कहते थे, सब उनका ही है। हम सबको ऐसा है, ऐसा उसने कहा। एक बहिन थी न? सबको उन्होंने ऐसा दिया है। सब कहाँ खडे हैं? भूल खा जाते हैं।
मुमुक्षुः- .. सूक्ष्म कर, ऐसा आता है। इसमें क्या कहना है? कैसे करना?
समाधानः- उपयोग स्थूल हो गया है। सब स्थूलतासे ग्रहण होता है। ये सब बाहरका है। बाहरके उपयोगमें ये जो विकल्प, राग आदि ग्रहण कर रहा है, स्थूल