Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

२१०

मुमुक्षुः- प्रगट है, महान है, आप कहते हो कि लक्षणसे ही आपको प्राप्त हो जायगा।

समाधानः- लक्षणसे पहिचाना जाता है। वह स्वयं ही है, अन्य कोई नहीं है।

मुमुक्षुः- स्वयं उस रूप ही है।

समाधानः- उस रूप ही है।

मुमुक्षुः- हाँ जी। गुरुदेव बहुत कहकर गये हैं और आप बहुत कहते हो। परन्तु गुरुदेव परमगुरु और मेरे तो आप भी गुरु ही हो।

समाधानः- .. अभ्यास करते रहना। बारंबार अभ्यास करते रहना, न हो तो भी। बारंबार करते रहना।

मुमुक्षुः- आपको तो धन्य है! आप जैसी कोई व्यक्ति इस विश्वमें नहीं है, माताजी! नमन करने जैसी व्यक्ति या स्मरण करने जैसी व्यक्ति तो एक आप ही हो।

समाधानः- आपका स्वास्थ्य बराबर नहीं रहता था, ठीक रहता है? .. महाभाग्य, इतने जीवोंको तैयार कर दिये। पूरा हिन्दुस्तान तैयार कर दिया। हर एक व्यक्ति कितने तैयार हो गये हैं। आत्मा-आत्मा करना सीख गये हैं। इस पंचमकालमें सब क्रियामें पडे थे। शुभभावसे धर्म होता है, ऐसा मानते थे। उसके बजाय आत्मा.. आत्मा.. शुभाशुभ भावसे आत्मा न्यारा है। भले बीचमें शुभभाव आये, लेकिन तेरा स्वभाव नहीं है। तू उससे भिन्न है, ऐसा कहनेवाले गुरुदेव मिले। द्रव्य-गुण-पर्यायकी गहरी-गहरी .. की। गुरुदेवने पूरे हिन्दुस्तान, हिन्दी-गुजराती सबको गुरुदेवने तैयार किया। गुरुदेवने ही सबको मुक्तिके मार्ग पर मोड दिये हैं। महाभाग्यकी बात है। ऐसा भेदज्ञानका, स्वानुभूतिका मार्ग बताया।

मुमुक्षुः- किसीको गुरु न मिले, ऐसे गुरु पंचमकालमें.. आहाहा..! कुछ अलग ही प्रकारसे कहते थे।

समाधानः- भेदज्ञान करना वही मुक्तिका मार्ग है, स्वानुभूति करना वही (मुक्तिका मार्ग है)।

मुमुक्षुः- भेदज्ञान ही मुख्य वस्तु है।

समाधानः- भेदज्ञान मुख्य वस्तु है।

मुमुक्षुः- भेदज्ञान होनेके बाद ही अपने आत्माका लक्ष्य होता है।

समाधानः- केवलज्ञान बादमें होता है, पहले तो उसका भेदज्ञान होता है। जो परिणति आये उसका भेद वर्ते या उसका रस टूट जाय या भेदज्ञान हो कि मैं चैतन्य ज्ञायक हूँ, ज्ञायक हूँ, ऐसी परिणति रहा करे। कभी-कभी उसकी स्वानुभूति हो। बाकी भेदज्ञानकी धारा निरंतर वर्तती रहे, ऐसी सम्यग्दृष्टिको परिणति होती है।