Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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समाधानः- गुरुदेवने मार्ग इतना स्पष्ट कर दिया है। उसमेंसे गुरुदेव द्रव्य-गुण- पर्यायकी सूक्ष्म बातें (करते थे), सबके कानमें डाल दी है। कहीं कोई अटके नहीं ऐसे। नहीं तो कहाँ क्रियामें थे। शुभभावमें। वहाँसे द्रव्य-गुण-पर्यायमें (ले आये)। उस बातको एकदम सूक्ष्म करके बतायी। सब सूक्ष्म बातें बाहर आ गयी।

मुमुक्षुः- बाह्य क्रिया और शुभरागकी ही बात थी। उसमेंसे द्रव्यानुयोगका स्वभाव, विभाव, द्रव्य, गुण, पर्याय आदि..

समाधानः- क्रियाका तो अलग किया, परन्तु द्रव्य-गुण-पर्यायका गुरुदेवने एकदम स्पष्टीकरण कर दिया।

समाधानः- ... आत्माकी रुचि करनी, उसकी महिमा करनी, उसकी लगन लगानी। बाहरकी रुचि कम करनी। देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा, आत्माकी महिमा करनी। आत्माका स्वभाव क्या है? आत्मा जाननेवाला ज्ञायक है, उसमें भरा है, उसमें अनन्त गुण, वह अपूर्व वस्तु है। बाहर कहीं अपूर्वता नहीं है। उसकी अपूर्वता लगाकर उसे पहिचाननेका प्रयत्न करना, भेदज्ञान करना। वह करनेका प्रयत्न करना। उसके लिये वांचन, विचार, शास्त्र-स्वाध्याय सब करने जैसा है। मन्दिर और प्रतिष्ठा हो, भगवान जिनेन्द्र देवकी महिमा, गुरुकी महिमा आदि करने जैसा है।

चैतन्यतत्त्व कैसे पहचानमें आये? आत्मा कैसे पहचानमें आये? अनन्त कालसे पहचाना नहीं। गुरुदेवने बताया। सब बाह्य क्रियामें धर्म मानते थे, शुभभावसे धर्म होगा, ऐसा मानते थे। लेकिन सब शुभभावमें (धर्म नहीं है)। बीचमें शुभभाव आते हैं, लेकिन वह आत्माका स्वरूप नहीं है। उन सबसे आत्माको भिन्न पहिचानना। आत्मामें अनन्त गुण (हैं)। कोई अदभुत तत्त्व है, अनुपम तत्त्व है, उसे पहिचाननेका प्रयत्न करना। वह अपूर्व वस्तु है। उसकी स्वानुभूति कैसे हो? मुक्तिका मार्ग कैसे प्रगट हो? वह जीवनमें करनेका है।

बचपनसे बहुत सुना है, गुरुदेवने कहा है। उसे लक्षणसे पहिचानकर भिन्न करना, वह करनेका है। (भिन्न ही है), परन्तु स्वयं भ्रान्तिसे उसमें जुडता है। पुरुषार्थ करना वही करना है। स्वयं पुरुषार्थ करते रहना, अभ्यास करते रहना। बारंबार एक ही करते रहना। चैतन्य ज्ञायक है, ज्ञायक है, उसीका अभ्यास करते रहना। विस्मृत हो जाय तो भी वही अभ्यास करते रहना। वही करनेका है।

बारंबार भेदज्ञान करते रहना। ये शरीर भिन्न, विभाव भिन्न, सब भिन्न है। मार्ग एक ही है। उसके लिये सब विचार, वांचन सब उसके लिये हैं। देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा आदि सब एक चैतन्यके लिये (है)। चैतन्य, बस, चैतन्य.. चैतन्य, उसीका रटन करने जैसा है, बारंबार। उसका स्वभाव पहिचानकर वह करनेका है।